-डा हरीशकुमार सिंह,उज्जैन
भुक्तभोगी होने के कारण अपनी यह पक्की धारणा है कि किसी को किराये से मकान देना अपनी सुकून की नींद खराब कर जोखिम भरा ही होता है । इसलिए मकान खाली भले ही पड़ा रहे , किराए से देना बुद्धिमानी का काम तो कतई नहीं है । आजकल तो कोर्ट भी बड़े राजनेताओं के बड़े वकीलों को भी लाइन से आने को कहकर ,आमआदमी को खुश होने का अवसर देती है कि सब बराबर हैं और ऐसे में कभी किरायेदार मकान खाली न करके कोर्ट में चला गया तो इस जिंदगी में तो मकान खाली होने से रहा। मगर अपन ही नहीं देश की दिल्ली सरकार भी ऐसे जबरिया कब्जाधारियों से परेशान रहती है क्योंकि दिल्ली में ऐसे दो सौ से ज्यादा समाजसेवी पूरे देश से हैं जो अनधिकृत रूप से सरकारी बंगलों पर कब्जा किये बैठे हैं। बार बार सरकारी नोटिस मिलने के बाद भी बँगला खाली नहीं करते हैं | ऐसे में दो सौ में से एक महानुभाव से मैं पूछ बैठा कि गुरु ये क्या बात हुई। आपको बंगला खाली करने में क्या परेशानी है। वो बोले कि कोई परेशानी नहीं है बस मन नहीं हो रहा इस बंगले को छोड़ने का | अभी कुछ रिश्तेदार बचे हैं जिन्हें दिल्ली दिखाना है | फिर हम तो जिंदगी भर , किरायेदारों से , मकान खाली करवाने का ही व्यवसाय करके यहां तक पहुंचे हैं और किरायेदार के कानूनी अधिकारों को भी जानते हैं । मैंने कहा कि आप व्यवसाय कह रहे हैं ,यह तो गुंडागिर्दी है ? वो बोले गुंडागिर्दी नहीं भाई , मकान खाली कराना भी एक सम्माननीय व्यवसाय रहा है और इसमें खूब कमाई भी है | हम परेशान मकान मालिकों का टेंशन कम करते रहे हैं और सशुल्क सेवाएं देते रहे हैं और मकान मालिक को पक्का यकीन दिलाते हैं कि आप बेफिकर रहें ,हम आपको आपका मकान खाली करवाकर सौंप देंगे।
वे आगे बोले कि मकान खाली करवाने की हमारी दो स्कीम चलती हैं। पहली स्कीम में कब्जा कर बैठे किरायेदार से मकान खाली करवा के देना और दूसरी में मकान खाली कराने के बजाए हम वो मकान ही औने पौने दाम में खरीद लेते हैं | फिर उसे हमारे नाम से हमारे आदमी डराकर मकान खाली करवाते हैं। जैसे किरायेदार मकान खाली ना कर रहा है तो हमारे आदमी , कभी सूर्योदय के पहले तो कभी सूर्योदय के बाद जाकर किरायेदार को विनम्रतापूर्वक मकान खाली करने का निवेदन करेंगे। किरायेदार यदि ठस और अड़ियल है तो हमारे लोग इसी समय में आकर उसे चमकाएंगे। फिर भी मकान खाली नहीं किया तो आदमी फिर उसके सामान को अचानक से आकर तितर बितर कर इधर उधर फेंक कर भाग जाएंगे। नब्बे प्रतिशत किरायेदार तो घबराकर मकान ख़ाली कर ही देते हैं। बाक़ी दस प्रतिशत से खाली करवाने के लिए हम खुद उससे मीटिंग फिक्स करते हैं और इस पार या उस पार कह कर आ जाते हैं | हमारा उसूल है पहले पोलाईटली, फिर टाईटली और फिर फाईटली । मैंने पूछा कि आपको पुलिस या प्रशासन का ख़ौफ़ नहीं होता यह सब करते। वो बोले बहुत मामूली बात है यह क्योंकि हम सम्बंधित को बताकर ही भेजते हैं अपने आदमी उस मोहल्ले में । ये भी तो समाजसेवा ही है न और अपने एरिये के थाने के इंचार्ज को , गणतंत्र दिवस पर , सर्वश्रेष्ठ थाने की शील्ड हम अपने खर्चे से बनवाकर , जनता के सामने इंचार्ज का सम्मान कर , फ़ोटो भी छपा लेते हैं। एक हम ही होते है जो पुलिस को कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार मानते हैं इसलिए पुलिस भी हमें समाजसेवी मानती है और चुप रहती है। हम उनकी ईज्जत करते हैं और टाइम बेटाइम वे हमारी इज्जत रख लेते हैं | यदि मकान मालिक ,किरायेदार से ज्यादा परेशान है तो हम उसे मकान बेचने का ऑफर देते हैं। मकान मालिक किरायेदार से छुटकारा चाहता है और शांति से जीना चाहता है तो मकान बेचने में देर नहीं करता | मकान ख़रीदते ही हम किरायेदार की बिजली ,पानी बंद कर देते हैं। किरायेदार को समझाते हैं कि ये खानदानी काम है हमारा इसलिए मकान खाली करना ही उत्तम है। या फिर किरायेदार को कुछ ले देकर मामला सलटा लेते हैं।अब आप ही बताओ कि कौन माई का लाल , बंगला खाली करवा सकता है हमसे जो खुद दूसरों से खाली करवा करवा के यहां तक पहुंचे और जिन्हें किरायेदारों से मकान खाली करवाने का गहरा अनुभव होता है।और फिर सरकारी जमीन पर कब्जा करने का हमारा शौक पुराना रहा है और फिर यह तो राजधानी का सरकारी मामला है। मैंने कहा कि आप सही हो कानून भी कहता है 'कब्जा सच्चा ,बाकी झूठा'|
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