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*पूरनभंडारी सहारनपुरी की कविता -ज़ख़्म

 


भूल गया   इंसा अब मुस्कुराना

पीछे रह गया वो गुज़रा ज़माना

 

ज़ख्मी है दिल हालात के हाथों

दिखता है कहाँ सकूं में ज़माना

 

आभासी रिश्तों  से घिरा हैं इंसा

कहाँ रह गया अब रिश्ता पुराना

 

भटक  रहे  हैं    अंजान  राहों पे 

पता ही नहीं मंजिल का ठिकाना  

 

निगाहों में  वहशीपन है छुपा 

ताकते है   बनाकर  कोई बहाना

 

जुबां पे तल्खी हैं   अब सभी के

कहाँ रहा  अब प्यार का ज़माना

 

लगेगा समय     भरने में इसको

नया ज़ख़्म है  ये कहाँ है पुराना

 

*पूरनभंडारी सहारनपुरी

 

 

 









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