समीक्षक - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
बच्चों के मनोविज्ञान और उनके दर्शनशास्त्र को समझना कभी भी आसान नहीं रहा है। बाल मनोविज्ञान के सापेक्ष सृजनकार्य कर पाना बड़ी बात है। यह कार्य चुटकी बजाने जैसा नहीं है कि जब जी चाहा, बजा दिया। बच्चों के लिये कुछ लिखने से पहले उस मनोभूमि पर उतरना पड़ता है, जहाँ बचपन किलकारियाँ भरता है, कुछ पाने की ज़िद करता है और राग-द्वेष से मुक्त रहकर अपने होने-जीने में मगन रहता है। इन सबके लिये अपने मन को बालमन हो जाने की भरपूर आज़ादी दे पाना हर किसी के बूते की बात नहीं। वरिष्ठ रचनाधर्मी श्री चक्रधर शुक्ल ने यही बूता दिखाया है बाल कविता संग्रह दादी की प्यारी गौरैया में। कई जीवन्त रचनाओं से सुसज्जित इस कविता-संग्रह की रचनाओं को पढ़कर-गुनगुनाकर रंजन-मनोरंजन करते हुये बच्चे तो बहुत कुछ सीखेंगे ही, बड़े भी बचपन की यादों को तरोताज़ा कर सकेंगे।
पिछले चार दशक से लेखन कार्य कर रहे साहित्य की कई विधाओं में कलम के धनी वरिष्ठ सृजनधर्मी चक्रधर शुक्ल जी का क्षणिका विधा पर विशेष कार्य है। उत्कृष्ट क्षणिकाओं के लिए आपकी पहचान देश भर में है। वर्ष 2015 में आपका क्षणिका संग्रह अँगूठा दिखाते समीकरण प्रकाशित हो चुका है। हाल ही में आपका हास्य-व्यंग्य का संग्रह हास्य-व्यंग्य सरताज श्रंखला के तहत कल्पना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। आपकी व्यंग्य शैली आम आदमी की बात करती है। यही कारण है कि पाठक आपसे सहजता से जुड़ जाता है। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के खजुहा ग्राम में जन्में श्री शुक्ल जी की कर्मभूमि एवं वर्तमान निवास कानपुर है।
दादी की प्यारी गौरैया की कविताएँ बाल सहज मन की कविताएँ हैं। इन कविताओं को शिक्षाप्रद कविताएँ कही जाएँ, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये रुचिकर कविताएँ बच्चों को अच्छा सीखने और अच्छा करने का संदेश भी देती हैं। खेल-खेल में और बात-बात में नैतिकता और सकारात्मकता के अनेक संदेशों को आत्मसात् किये बाल कविता संग्रह "दादी की प्यारी गौरैया" का शब्द-शब्द सार्थक है। इस महत्वपूर्ण बाल कविता संग्रह के लिए कृतिकार को कोटिक बधाई।
इसी संग्रह से प्रस्तुत हैं दो बाल कविताएँ-
(1)
चर्चा ही चर्चा जंगल में,
खुला मदरसा जंगल में।
भालूराम पढ़ाते इंग्लिश,
गणित पढ़ाते बंदर जी।
डाँट रहे हैं वह गीदड़ को,
कैसे आये अंदर जी?
चिंपाराम पढ़ाते हिस्ट्री,
चुप ना रहते हाथी जी।
बच्चों को योगा करवाते,
खेलकूद के साथी जी।
तोता जी संस्कृत पढ़ाते,
हिन्दी को मिस मैना जी।
हिन्दी अपनी प्यारी भाषा,
हिन्दी का क्या कहना जी।
(2)
दादी की प्यारी गौरैया,
खाना खाने आती।
बड़े चाव से दादी उसको,
चावल दाल खिलाती।
उसके लिए एक प्याले में,
पानी रखा हुआ है।
छुट्टी वाले दिन गौरैया,
खाती मालपुआ है।
चीं-चीं करके बड़े प्यार से,
बात किया करती है।
दादीजी के आसपास,
दिन भर घूमा करती है।
कभी छेड़ देते हम उसको,
दादी से कह आती।
दादी की प्यारी गौरैया,
हमको डाँट खिलाती।
कृति- दादी की प्यारी गौरैया(बाल कविता संग्रह)
कृतिकार- चक्रधर शुक्ल
प्रकाशक- बाल साहित्य संवर्धन संस्थान, कानपुर(उत्तर प्रदेश)
मूल्य- ₹ 20
*डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर', 24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.) 212601 मो: 9839942005
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें