*डॉ दीपेंद्र शर्मा*
धन किसी देश ही नहीं व्यक्ति की भी सबसे बड़ी सामर्थ्य है। अब यह सामर्थ्य घर बदल चुकी है। देश में आर्थिक लेन- देन हेतु कभी साहूकारी या महाजनी प्रथा प्रचलित थी। उन प्रथाओं पर लोगो का विश्वास था। अधिक ब्याज व अनियमितता के चलते यह कारोबार चाहे विलुप्त सा हो गया गया है पर उसके गुण अवगुण नहीं। आजकल धन का लेन- देन बैंकों के माध्यम से हो रहा है। वहीं आपके सारे गुणों के दर्शन हो जायेगे। फिर आपको भगवान ही नजर आएंगे, या फिर दिन में तारे। पहले नोट डब्बों, साड़ियों, मटकों, थैलियों, पेटियों, आलमारियों, बिस्तरों, अंडर गारमेंट तक में रखे जाते थे। नोटबन्दी के बाद अधिकांश जमापूंजी बैंकों के पास जमा है। बैंकों में अपना जमा रुपया निकालना आम आदमी के लिए बड़ा कठिन होता जा रहा है। केवल नीरव मोदी, विजय माल्या, गोपाल कांडा, राहुल चौकसे जैसे कुछ भारतीय ही अपवाद है। कभी तो लगता है कुछ बैंकों के कुछ कर्मचारियों का व्यवहार तो ऐसा है जैसे लगता है दिए रुपये की इंट्री तो आपके खाते से हो रही है पर निकासी उस बैंक कर्मी की जेब से। रुपए सरलता से तरल ना हो जाये इसलिए कई मनमाने नियम बना दिये है, कुछ नियमों से तो शायद आर बी आई भी अनभिज्ञ होगा। वैसे ही ये नियामक ग्राहक के दुखों से कहा परिचित होते है। लगता है नित नए नियमों से बैंक में अपना जमा रुपया वापस निकालना हाथी के मुंह से गन्ना निकालने जैसा है। हालांकि हाथी दयावान हो सकता है। वह इंसान थोड़े ही है। पहले तो फुटबॉल की भांति तीन चार काउंटर फिक लो, फिर अपने मोबाइल से प्रिय दोस्त से बतिया कर फुर्सत हुए कर्मचारी के बैंक काम करने की थकान पड़ लो, फिर प्रवचन सुनना ही है इतना न्यूतम तो रखना ही है? प्रतिदिन इससे ज्यादा राशि नहीं निकाल सकते ? पर्ची मत भरों एप्प डाउनलोड कर लो। ताकि कर्मचारी का लोड डाउन हो सके, और वह अप। आप पर हावी। पिछले दिनों तो एक बैंक की पासबुक पर सील लगी मिली। आपके खाते की एक लाख की जमा राशि की ही ग्यारंटी है। हो सकता है कल सारे बैंक नियमों के स्थान पर गीता सार छपाने लगेंगे। क्या साथ लाये हो ? तुम्हारा क्या है ? तुमने क्या खोया है ? क्यों व्यर्थ चिंता करते है ? जो लिया कहीं से भी यही दिया है। आज जो तुम्हारा है कल किसी और का होगा। नहीं तो तब तक तो हम कुंडली मारकर बैठे ही है, आदि आदि। हमने प्राण पर्याप्त पी ही लिए है तो अपने प्राण क्यों देते हो। हमने आपको हर्ट किया है और आपने बदले में हार्ट अटैक ले लिया। हमें एक विचार आ रहा है कि जब आपने महाजनों और साहूकारों पर भरोसा नहीं किया तो हम बैंकों पर क्या सोचकर भरोसा कर लिया ? क्या वैसेे ही जैसे आप लोग राजनीतिज्ञों पर भरोसा कर लेते हो ? फिर भी आप को अपने भगवान पर भरोसा है तो भरोसा बनाए रखो। हम सुने ना सुने वह जरूर सुनेगा। हो सकता है कि आपका भाग्य प्रबल हो और आपका जमा रुपया सहजता तथा सम्मान सहित कभी ना कभी आपको वापस मिल ही जाए। तब तक तो राम नाम ही सत्य है।
*डॉ दीपेंद्र शर्मा ,धार म प्र ,मो9425967598
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