*आर.के. सिन्हा*
दीपोत्सव के आने में जब एक हफ्ता भी शेष नहीं बचा है, तब हमारे यहां जिस पैकेट बंद दूध को करोड़ों लोग पीते है उसकी गुणवत्ता को लेकर आई एक रिपोर्ट सचमुच में डराने वाली हैं। उसके निष्कर्षो को देखकर लगता है कि करोड़ों हिन्दुस्तानी दूध के नाम पर जहर ही पीने को मजबूर हैं। चूंकि आलोक पर्व पर देश भर के हलवाई और घरों में भी पैकेट बंद दूध से ही ज्यादातर मिठाईयां बनाई जाती हैं I इसलिए अब लग रहा है कि मिठाई खाना तो खतरे से खाली नहीं रहा है। साथ ही यह भी लग रहा है कि जिस मिठाई से हम-आप दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश का भोग लगाते हैं, वह भी दूषित हो गई है। यह सच में बेहद दुखद स्थिति है। खाद्य नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकार (एफएसएसएआई) की ओर से दूध की गुणवत्ता पर किए गए एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि जहां खुले दूध के 4.8 फीसदी सैंपल में खामियां पाई गईं, वहीं पैकेट बंद दूध के 10 फीसदी से अधिक सैंपलों में गड़बडी मिलीं।
एक बात और कि मिलावट से ज्यादा दूध दूषित पाया गया है। इन स्थितियों में आख़िरकार एक आम इंसान करे तो क्या करे। अभी तक आम हिन्दुस्तानी दूध का एक गिलास पीकर संतुष्ट हो जाता है और यह सोचता है कि उसने कुछ पौष्टिक पी लिया। अब वह ताकतवर हो गया। याद रखिए कि दूषित दूध कैंसर, आंख, आंत, दिल और लिवर के रोगों के बड़े कारण हैं। यही नहीं, इसके सेवन से इंसान टाइफाइड, पीलिया, अल्सर, डायरिया जैसी बीमारियों की चपेट में भी जल्दी से आ सकता है। मतलब यह कि अब दूध से खतरे ही खतरे हैं। अब बताइये कि दूध के मिलावटखोरों को क्यों बख्शा जाए? अभी तक इन्हें क्यों नहीं कठोर से कठोर दंड दिया जा रहा है?
जब भारत में दूध की गुणवत्ता का इतना बुरा हाल है, तो फिर यह दावा सुनने में अच्छा नहीं लगता कि हमारे यहां दूध का उत्पादन बढता जा रहा है। भारत में वर्ष 2014 से 2017 के बीच दूध का उत्पादन 30 फीसद की रफ्तार से बढ़ा है। अगर हम अपने नागरिकों को शुद्ध दूध भी नहीं दे सके तो फिर दूध के बढ़े हुए उत्पादन पर इतराना तो बंद करना ही होगा। अब हमें दुग्ध विकास के लंबे चौड़े दावे करने छोड़ ही देने चाहिए। संभव है कि आपको शायद यह भी याद हो कि एफएसएसएआई की ताजा रिपोर्ट से कुछ समय पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत सरकार को भेजे गए एक एडवाइजरी नोट में चेतावनी देते हुए कहा था कि उसे दूषित दूध और उससे बनने वाले उत्पादों पर रोक लगाने के उपाय तलाशने होंगे। यदि यह न हुआ तो साल 2025 तक भारत की बड़ी आबादी कैंसर जैसे जानलेवा रोग की गिरफ्त में होगी। सरकार ने लोकसभा में 17 मार्च, 2015 को स्वीकार भी किया था कि देश में 68 फीसद दूध दूषित ही होता है। दरअसल दूषित दूध बेचने वालों पर आप एक ही तरह से काबू पा सकते हैं। इनका एकमात्र इलाज है मौत की सजा। अगर हम इन्हें मौत की सजा नहीं देंगे तो यह देश को खोखला करते रहेंगे। आगे की पीढ़ियों को अस्वस्थ करते ही रहेंगेI
यानी दूषित दूध बेचने वालों का एकमात्र इलाज मृत्यु दंड ही हो । ये अन्य किसी भी दंड के मिलने से सुधरेंगे भी नहीं। क्या चीन या अमेरिका या पास के सिंगापुर में कोई दूषित दूध बेच सकता है? नामुकिन। इसीलिए वे देश आगे बढ़े हैं। हमारे यहां पर रिपोर्टें आ जाती हैं और फिर हम अगली रिपोर्ट का इंतजार करने लगते हैं। इस तरह से तो दूध में जहर घोलकर बेचने वाले सुधरने वाले तो नहीं है। इनके भी बहुत लंबे हाथ हैं। ये शक्तिशाली भी हैं। इन पर कड़ी कार्रवाई हो तब ही तो कोई बात बनेगी। एक सवाल तो यह भी पूछने का मन होता है कि दूध उत्पादन बढ़ाने का लाभ ही क्या है, अगर हम मिलावटी दूध के कारोबार पर रोक न लगा सके। दूध कारोबार के क्षेत्र में प्रोसेसिंग संयंत्रों की भी भारी कमी है। दूध को सही-सुरक्षित रखने के लिये ठंडा तापमान एवं सही हाईजिनिक ढंग से प्रोसेसिंग आवश्यक तत्व होता है। इस व्यवसाय को बेहतर तो किया जा सकता है लेकिन तभी जब गांवों में छोटे-छोटे प्रोससिंग प्लांट लगें और कलेक्शन सेंटर हों ताकि किसानों को भी दूध के अच्छे दाम मिल सकें और दूध को जहरीला होने से बचाया जा सके।
दूध के जहरीला होने का एक बड़ा कारण पशु आहार भी है जिसमें पशुओं में दुग्ध वृद्धि के नाम पर खुलेआम यूरिया मिलाया जा रहा है I यह तो सबको पता ही है कि दीवाली-होली जैसे पर्वो के समय मिलावटी दूध की सप्लाई खुलेआम होती है। तब सफेद जहर बेचकर कुछ लोग तत्काल पैसा कमाने की फिराक में लगे रहते हैं। इस तरह के दूध से बनी मिठाइयां किसी को भी खुशहाल पर्व का सत्यानाश कर सकती हैं। मतलब यह कि त्योहार के दिन ही किसी को भी बीमार कर सकती हैं। पर पर्वों के मौके पर तो हरेक भारतीय मिठाई खाता ही है। पर्वों के अवसर पर शुद्ध मिठाई मिलना एक बड़ी बात होती है। यह गंभीर और दुखद स्थिति है। तो क्या हम दीपावली-होली पर भी मिठाई ना खाएं?
बहरहाल सरकार 68 फीसद दूध को दूषित मानती है। तो क्या शेष बिकने वाला दूध सही होता है? अब सच्चाई जाने लें। आज देश की अधिकांश गायों का दूध जर्सी, होलिस्टियन, फ्रीजियन आदि दोगली किस्म की गायों का ही हैं, जो वास्तव में गाय हैं ही नहीं। वे तो जंगली सूअर और नीलगाय को क्रॉस कर बनी एक ऐसे दोगले जानवर हैं जिन्हें गोरी चमड़ी वाले उनके मांस को अपने भोजन के लिए इस्तेमाल करते हैं।
इन कथित गायों के दूध को “ए-1” की संज्ञा दी जाती है। इनमें “बीटामारफीन” नाम का जहर है जो डाइबिटीज, ब्लडप्रेशर, हर प्रकार के हृदय रोग, मानसिक रोग और गर्भस्थ शिशुओं में होने वाली मानसिक या शारीरिक विकलांगता, जिसे “औटिज्म” कहा जाता है, जैसी पांच बड़ी बीमारियों की वजह है। अब बताईये कि करें तो क्या करें ? एक हल तो यह है कि देसी गायों को ज्यादा से ज्यादा विकसित और संवर्धित किया जाये ताकि दूध से “बीटामारफीन” नामक जहर तो कम हो सकेगा । इस बार की दीवाली पर गुड और दूध रहित मिठाईयों और खजूर जैसे मीठे फलों और सूखे मेवों का सेवन करें और उपहार में प्रयोग करें I
लेकिन, तबतक तो सारे मसले का एक ही हल समझ आ रहा है कि दूध के नाम पर जहर बेचने वालों को अब मत छोड़ो । इन्हें उम्र कैद या मौत की सजा दो। यकीन मानिए कि सब सुधर जाएंगे। स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए इन देश के शत्रुओं पर हल्लाबोला जाना चाहिए।
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)
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