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मिट्टी के दीयों का उचित स्थान


*ओमप्रकाश प्रजापति*
दीपावली या दीवाली अर्थात 'रोशनी का त्योहार' शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीपावली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
      दोस्तों कुछ ही दिनों में दीपावली आने वाली है। उम्मीद करता हूँ आपकी तैयारियां भी जोरों पर होंगी। आप भी अपने घर की साफ़-सफाई में जुटे होंगे और उसकी साज-सज्जा के दीये भी खरीदारी कर रहे होंगे। दीपावली दीपों का त्यौहार है, दीपावली का अर्थ ही होता है दीपों की कतार, लेकिन आज के आधुनिक युग ने इस त्योहार को बदल कर रख दिया है। वो दीपक कहीं खो से गये हैं जो वास्तव में इस त्यौहार की आत्मा हैं, अब उनकी जगह इलेक्ट्रिक लाइटों और झालरों ने ले ली है।



     मैं आपको उन मिट्टी के दीपकों की याद दिलाना चाहता हूँ जिन्हें जलाकर हम सब बड़े हुए हैं, आज मैं आप सबसे पुनः उन दीपकों को उनका उचित स्थान देने की अपील कर रहा हूँ बल्कि दीपकों के प्रयोग के महत्त्व व फायदों की वजह से कह रहा हूँ। मिट्टी के दीपक निर्माण के समय, टूट जाने पर एवं फेक देने पर पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, जबकि इलैक्ट्रिक लाइट और झालर ज़्यादातर प्लास्टिक से बने होते है जो वातावरण के लिए हानिकारक हैं। दीपावली पर मिट्टी के दिए जलाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न तो होती हैं इसके अलावा आप और हम मिलकर जब यह मिट्टी के दीपक खरीदेंगे तो इन दीपको  को बनाने में मेहनत करने वालो के परिवारों में दीपावली अच्छे से मनेगी, जरा सोचिए अगर हम इन लोगों से मिट्टी के दीपक लेते हैं, दीपक बनाने में अनेक परिवारजुड़े होते हैं जैसे मिट्टी बेचने वाला, मिट्टी को ढोने वाला, मिट्टी के बर्तन बनाने वाला व मिट्टी के दीपक बेचने वाला, इस तरह कई परिवार जुड़ते हैं। आप और हम अपने घरों , प्रतिष्ठानो में रोशनी करने के साथ-साथ मिट्टी के दीपक से जुड़े परिवारों के घरों में भी रोशनी के सहभागी बनेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने की बड़ी घोषणा की है।और हमें भी जागरूक होना होगा, तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ वातावरण दे पाएंगे, अगर हम अभी भी नहीं चेते तो आने वाला कल प्रदुषण भरा होगा। 
       माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्रीराम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। दीपावली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।



*ओमप्रकाश प्रजापति (संपादक- ट्रू मीडिया)दिल्ली


 


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