*विक्रम कुमार*
कुछ भी हो इंसानियत का भाव नहीं भूलूंगा
हमने बुजुर्गों को अपने पाया है वरदान में
अपना मान भी बसा कनिष्ठों के सम्मान में
भाषा जो प्रेम की है वो सबसे सरल जहान में
ये साथ निभाता है व्यक्तित्व के उत्थान में
प्रेम का सभी पर है प्रभाव नहीं भूलूंगा
कुछ भी हो इंसानियत का भाव नहीं भूलूंगा
न दौलतें न धन न ही कार हमें प्यारे हैं
पुरखे जो देके गए वो संस्कार हमें प्यारे हैं
गुरुओं के दिए विद्या के संचार हमें प्यारे हैं
मां बाप के चरणों के आकार हमें प्यारे हैं
पाला है जिसमें रहके भी वो अभाव नहीं भूलूंगा
कुछ भी हो इंसानियत का भाव नहीं भूलूंगा
जिंदगी से हारना कायरता की निशानी है
सुख व दुख तो जिंदगी की एक अटल कहानी है
सुख में दुख में रस्म जीवन की हर निभानी है
जीत लेंगे जिंदगी को हार नहीं मानी है
उतार है जीवन कभी चढा़व नहीं भूलूंगा
कुछ भी हो इंसानियत का भाव नहीं भूलूंगा
कुछ भी हो इंसानियत का भाव नहीं भूलूंगा
*विक्रम कुमार मनोरा, वैशाली
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