*आर.के. सिन्हा*
दीवाली का पर्व तो खुशी-खुशी देश ने मना ही लिया। कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई I इसने यह भी ठोस संकेत दे दिए कि अभी भी करोंड़ों हिन्दुस्तानियों की जेब में और बैंकों में अरबों रूपये का पर्याप्त पैसा है खरीददारी करने के लिए। इसलिए किसी तथाकथित “अर्थशास्त्री” का यह कहना कि मंदी के कारण दीवाली में खरीददारी नहीं हुई, सरासर गलत ही होगा। दीवाली से दो-तीन हफ्ते पहले तक सारे देश में यही वातावरण बनाया जा रहा था कि कारों की बिक्री बिल्कुल बैठ गई है। पर धनतेरस का त्योहार खुशियां लेकर आया। इस दौरान हजारों कारों की बिक्री हुई। दिल्ली-एनसीआर में ही मर्सिडीज बेंज और बीएमड्ब्ल्यू जैसी लक्जरी कारें सैकड़ों की संख्या में बिकीं। अगले कुछ दिनों के बाद जर्मन की चांसलर एंजेला मर्केल भारत आ रही है। उन्हें जब इस आंकड़े के संबंध में पता चलेगा कि उनके देश के दो कार निर्माता भारत में भी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं, तो उन्हें अवश्य ही प्रसन्नता होगी। संभव है कि उसके बाद जर्मनी से अन्य कंपनियां भी भारत का रुख करें। बहरहाल, देश की प्रमुख कार निर्माता कंपनियों जैसे मारुति और हुंडई मोटर इंडिया की भी इस दीवाली सीजन में जमकर कारें बिकीं। हुंडई के मुताबिक, उसने इस त्योहारी सीजन में कुल 12500 कारों की डिलिवरी की। इसके अलावा शेष कार निर्माता कंपनियों ने भी तबीयत भर अपना माल बेचा। कुछ हफ्ते पहले तक अधितकर कार निर्माता कंपनियों का हवाला देकर यह कहा रहा था कि मांग में भारी कटौती के कारण उनका धंधा बैठ गया है। अब उम्मीद तो यह करनी चाहिए कि वे अपने कर्मियों को पिंक स्लिप देने के संबंध में नहीं सोचेगी। कुछ हफ्ते पहले तक ये कंपनियां अपने बहुत से मुलाजिमों को निकालने के बारे में भी सोचने लगी थीं। कम से कम ऐसा अफवाह तो उड़ाया ही जा रहा था I
अगर मीडिया में आई खबरों पर यकीन करें तो ज्वैलर्स का धंधा भी खूब चमका। उन्होंने सोना बेचकर खूब चांदी काटी। ज्वैलर्स ने ग्राहकों को लुभाने के लिए हल्के वजन के साथ नए डिजाइन और धातु के मिश्रण वाली ज्वैलरी तैयार की । जिसे ग्राहकों ने हाथों-हाथ लिया। दरअसल धनतेरस पर सोने-चांदी की खरीदारी को शुभ माना जाता है। जाहिर है, इसलिए सर्राफा बाजार इस त्योहार का इंतजार करता है। हालांकि, आर्थिक सुस्ती के माहौल में इस बार कम बिक्री होने की आशंका जताई जा रही थी। पर वह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई।
इस दीवाली की रात को बम –पटाखे भी कुछ कम फोड़े गए। अगर आप गुजरे सालों से तुलना करें तो इस बार बहुत कम ही पटाखे चले। इस लिहाज से सारे देश में स्थिति सकारात्मक रही। छोटी दीवाली को तो ना के बराबर ही पटाखे भी फोड़े गए। दरअसल वक्त गुजरने के साथ भांति-भांति के पटाखे भी बाजार में आ रहे हैं I पहले कुछ पटाखे अत्यधिक धुंआ निकालते थे। उनके धमाके की आवाज भी बहुत तेज होती थी। जो सरकार द्वारा स्वीकृत मानक डेसिबल की तुलना में कई गुना ज्यादा होती थी। इस तरह के पटाखों पर तो रोक लगनी ही चाहिए थी । इको फ्रेंडली पटाखे बाजार में लाए जा सकते हैं, जिनसे धुंआ नहीं निकलता हो। सबको पता है कि दीवाली के पटाखों से जलने के कारण देशभर में हर साल सैकड़ों लोगों की आंखों की रोशनी चली जाती है। दिल्ली दीवाली के अगले दिन प्रदूषण की गिरफ्त में होती थी। पर इस बार स्थिति कमोबेश काबू में रही। दिल्ली में पिछले पांच सालों के मुकाबले प्रदूषण कम हुआ। राजधानी में सात-आठ बजे तक पटाखों की आवाज नहीं सुनाई दी थी। उसके बाद पटाखें चले पर पहले की तुलना में बहुत कम। दीवाली के पहले और अगले दिन तो पटाखे न के बराबर ही चले। हालांकि आपको याद ही होगा कि कुछ साल पहले तक तो दीवाली के पहले और बाद के कई दिनों तक जम कर पटाखे चलते थे। जरा सोचिए कि उस दौरान परिंदों और पशुओं की हालत क्या होती होगी। दीवाली के आसपास के दिन उनके लिए कितने कठोर होते होंगे। दीवाली के आसपास तांत्रिक क्रियाएं करने वाले लोग सैकड़ों उल्लुओं का शिकार करते थे । यह कोई नहीं कह रहा है कि अब सब कुछ सुधर गया है। पर समाज को समझ आ रहा है कि पटाखे फोड़ने के कितने नकारात्मक असर होते हैं। अब इतना तो कह ही सकते हैं कि आने वाले कुछ सालों के भीतर बम-पटाखे चलाए जाने का सिलसिला पूरी तरह से थम जाएगा।
अब दीवाली से पहले जरा दुर्गापूजा की भी बात कर लीजिए। इस बार कम से कम दिल्ली-एनसीआर में दुर्गा की प्रतिमाओं को यमुना में विसर्जित करने की अनुमति नहीं मिली। पूजा समितियां भी प्रतिमाओं को अस्थायी तालाबों में विसर्जित करने के लिए राजी हो गई। हम पर्वों और परंपराओं की आड़ में अपने पर्यावरण और नदियों को अनिश्चितकाल तक के लिए बर्बाद तो नहीं कर सकते। हमें सुधरना तो होगा ही।
इस बीच, महाराष्ट्र में शुद्ध मिट्टी से बनी हुई गणेशजी की प्रतिमाएं अब गणेश पूजा के समय विसर्जित होने लगी हैं। इन प्रतिमाओं में शुद्ध रूप से मिट्टी, गोंद और हर्बल रंगों का उपयोग जाता है। इन प्रयासों का भी स्वागत होना चाहिए। देखिए एक बात साफ है कि वक्त के बदलने के साथ हमें अपने पर्वों को मनाने के तरीकों में भी बदलाव तो करने ही होंगे। यह नहीं हो सकता कि हम गंगा, यमुना और दूसरी नदियों की सफाई की बात करें तो दूसरी तरफ उनमें हर साल हजारों मूर्तियों को विर्सजित भी करते रहें । इस तरह से तो नदियों की सफाई तो नहीं हो सकती। हम नदियों को पूजनीय भी मानते हैं और उन्हें गंदा भी करते हैं।
निश्चित रूप से त्योहारों के बिना अधूरा है भारत। अभी दीवाली गई है, तो [पूर्वी भारत में छठ तो पंजाब में गुरुनानक देवी जी के 550 वे जन्म दिन की तैयारियां चालू हो गई हैं। अब छठ का महान पर्व भी आ रहा है। पर्व हमें सदैव सकारात्मक बनाए रखते हैं। इसका हम इंतजार भी करते हैं। पर इनका आनंद तो तब ही है जब हम अपने पर्वों को सही तरह से मनाएं। इस दिशा में सकारात्मक पहल हो चुकी है। यह जारी रहनी ही चाहिए।
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)
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