*मीरा सिंह 'मीरा'*
आपको तो पता ही है कि सूरज बाबा की लाडली सर्दी रानी मायके आ गई हैं।अब जितने दिन भी रहेंगी, नखरा दिखाएंगी। लोगों को सताएंगी ,परेशान करेंगी।कम से कम दो-तीन माह का कार्यक्रम है । कोई तो इसे दुनियादारी समझाता कि शादीशुदा लड़की को ज्यादा दिन मायके में नहीं रहना चाहिए ।लोग बाग तरह तरह की बातें करते हैं।अगर आई भी है तो जरा सलीके से रहना सीखे। पर नहीं , जब देखो बूढ़े और बच्चों को सताने में लगी रहती है। बड़ों के पास तो ज्यादा देर तक नहीं टिक पाती पर निर्बल और कमजोरों को हरवक्त सताते रहती है ।न जाने सूरज बाबा की क्या मजबूरी है, वो कुछ बोलते ही नहीं।उन्हें चाहिए कि अपनी लाडली को समझाएं, उसकी गलतियों पर डांटे ।कुछ कायदा कानून सिखाएं। उसे नियंत्रण में रखें। नसीहत दें कि किसी को ज्यादा सताना ठीक नहीं होता है।देखिए न इसकी शरारतों व हरकतों को देखकर डीएम अंकल भी छोटे बच्चों के लिए स्कूल बंद कर दिए हैं। बच्चों पर ठंड तो पहले ही जुल्म ढा ही रही थी,अब घर वाले भी जुल्म ढाहेंगे ।यहां मत जाओ, वहां मत जाओ यह मत करो, वह मत करो जैसी जाने कितनी बातें मासूम मन पर चाबुक की तरफ पड़ेगी ।वह ना हंस पाएंगे, ना ही रो पाएंगे ।बच्चों का जीना दुश्वार हो जाएगा।टी वी देखेंगे तो लोग कहेंगे दिनभर टीवी मत देखो। गलियों में खेलने निकलेंगे तो कहेंगे सर्दी लग जाएगी,घर से बाहर मत निकलो। अब बच्चे करें भी तो क्या?यह कमबख्त सर्दी भला आई ही क्यों ?शूउउ शूउउ करते जान निकल रही है ।अकेले आती तो कोई बात नहीं, साथ में अपनी जेठ की लाडली सिरफिरी पश्चिमी हवा को भी लेकर आई है। दोनों ने मिलकर धरती पर तहलका मचा रखा है । दुनिया में सिर्फ सूरज बाबा से ही तो डरती है पर वह भी कुछ कहने के बजाय बादलों की ओट में छिप कर अपनी लाडली की खेल तमाशा देख अपनी आँखें मूंद ले रहे हैं । सच ही कहते हैं मां-बाप कोई भी हो अपनी औलाद की गलती देख नहीं पाते हैं । काश कि एकबार वो अपने लिहाफ से बाहर निकल अपनी लाडली के कारनामे देख पाते ।बेजुबान जीवों पर तो थर्ड डिग्री का अत्याचार कर रही है।रसूखदार की बेटी होने का नाजायज फायदा उठा रही है।
मेरा मन कहता है कि काश सूरज बाबा के लिए भी कोई बायोमेट्रिक लगा देता ।सरकारी कार्यालय के बाबू की तरह जब मन होता है,आते हैं।जब मन होता है चले जाते हैं।औचक निरीक्षण में पकड़े जाने का खौफ होगा तब न समय पर आने की कोशिश करेंगे । मौसम के अनुसार आने जाने की लत इन्हें छोड़ देना चाहिए ।समय बदल रहा है ।लोग जागरूक हो रहे हैं। भला यह कैसा नियम है कि उनका जब मन करे तब आएं, जाएं। वो दिन दूर नहीं जब उनकी भी तनख्वाह कटने लगेगी। आर टी आई के तहत कोई उनसे कभी पूछ बैठेगा कि गर्मियों में समय से पहले क्यों धमक पड़ते हैं तो जाड़ें में कभी सप्ताह भर दर्शन नहीं देते हैं ।आखिर क्यों?
*मीरा सिंह "मीरा"
डुमराँव, बक्सर, बिहार
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