*सुषमा दिक्षित शुक्ला
बसंत का नाम आते ही ज़ेहन में उभरते हैं बसन्त ऋतु के कई चेहरे कई रंग , बस निर्भर करता है लोगों का अलग अलग नजरिए से मधुमास को आत्मसात करना। यूं तो बसंत एक सुहानी ऋतु है जिसमें सर्दी की मंदिम शीतलता और ग्रीष्म की सुगबुगाहट का प्राकृतिक संगम है ।जब जाड़ों के कंपन से मुक्ति और ग्रीष्म की मंदिम सी गुनगुनाहट का बेसब्री से इंतजार हो ,तो यूं कहें कि बसंत का आगाज है। नन्हे-मुन्ने, बुजुर्गों और गरीबों को बसंत कष्टदायक ठिठुरन से मुक्ति-दायक एवं प्राणदायिनी सी होती है बसंत ऋतु ।
बसन्त ऋतु एक प्रेरणा है ।बसंत को अंगीकार करना, बसंत को स्वीकार करना ,बसंत को किस दृष्टिकोण से आत्मसात करना यह तो व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है ।
मेरी एक रचना का शीर्षक है, पतझड़ ही मधुमास बुलाए ,इस छोटी सी पंक्ति में बसंत को एक नवीन शुरुआत का द्योतक सिद्ध किया गया है । इसके गहन अर्थ में जाया जाए तो श्रीमद्भगवद्गीता का सारांश भी,बसंत का सूक्ष्म रूप दर्शाता है ।परिवर्तन ही संसार का नियम है,, यह वाक्य ही तो है बसंत का पर्याय ,जीवन से हताश एवं निराशा वादी विचारधारा के व्यक्तियों के लिए एक सुंदर सुगम प्रेरणा है ऋतुराज का अस्तित्व। क्योंकि जीवन में दुखों का आगमन और पलायन बसंत का सटीक प्रारूप है। पतझड़ भी एक स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया है, और बसंत भी ,बस इसी नजरिए से जीवन को देखने वाले अंधेरों में डूबने से बच जाते हैं ,और उजालों को तलाशने का प्रयत्न करते हैं ।
विद्या, ज्ञान एवं कला की देवी सरस्वती मां के पूजन के साथ प्रारंभ होता है ऋतुराज बसंत का स्वागत ,ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठता धारक मधुमास को ऋतुराज कहा जाना ,इसके तमाम प्राकृतिक ,आध्यात्मिक, व्यवहारिक एवं वैज्ञानिक कारणों से ही है ।
पहले के लोग अपने बच्चों का विद्या आरंभ कराने के लिए इस ऋतु की शुरुआत के पवित्र दिन बसंत पंचमी को ही चयन करते थे। क्योंकि वह दिन सरस्वती माता की अर्चना पूजा का दिन भी मनोनीत है परंतु अब ऐसा कम ही दिखता है ।हां आजकल भी भारतीय विद्यालयों एवं सांस्कृतिक सदनों में सरस्वती माता को माल्यार्पण एवं पूजन अनिवार्य रूप से बसंत पंचमी के दिन किया जाता है ।
प्रेमी जन के लिए बसंत ऋतु का अपना अलग खासा महत्व रहा है। प्रेम के दोनों पक्ष संयोग, वियोग में इसका अस्तित्व अलग ही मायने रखता है ।इसे मिलन ऋतु भी मानते हैं ।
पाश्चात्य देशों में इस ऋतु में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है ,और अपने भारतीय समाज में पूरा बसंत ही मिलन ऋतु का प्रतीक है ।दुश्मनों की दुश्मनी भुला देने वाली ,गले लगाने वाली ,होली भी वसंत ऋतु का ही तो एक हिस्सा है ,जो नफरत को भुलाकर सिर्फ प्यार को गले लगाना सिखाती है। तभी तो इसे मिलन की ऋतु ,प्यार की ऋतु वगैरा वगैरा कहते आये है ।
हालांकि इसके कुछ वैज्ञानिक कारण भी है जो पूरी तरह से प्रायोगिक हैं । प्रेम का दूसरा पक्ष वियोग ,,प्रेमी जनों के सुकोमल हृदय मे, मन मंदिर मे ,स्मृतियों एवं कल्पनाओं के सुंदर ख्वाब सा रहता है ,और एक सुखद मिलन का मीठा दर्द भरा इंतजार करवाता है ।
मधुमास अपने दामन मे प्रेम का अनूठा संदेश लेकर अवतरित होता है ,तभी तो लोग इसे ऋतुराज कहते हैं ।ऋतुराज खेतों में लहलहाती पीली सरसों के फूल ,सर्दी की ठिठुरन से उभरा खुला आसमान ,पतंगों की टोली से ऐसे शोभायमान रहता है जैसे की हर तरफ अब मिलन ही मिलन है, समृद्धि है ,खुशियां हैं। देखो है न ये मधुमास जीवन का प्रेरक ,परिवर्तन का द्योतक ।
*सुषमा दिक्षित शुक्ला,लखनऊ
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें