*व्यग्र पाण्डे
बसंत तुम आये
हर वर्ष की तरह
पर फुर्सत ही कहाँ है ?
आज के इंसान को
तेरे स्वागत की
तेरे सत्कार की
ना रही इसके पास वो दृष्टि
जो निहार सके तुझे
आज लगा लिए गये
अपने मुताबिक
स्वार्थ के बगीचे
जिसमें खिल रहे
छल-कपट, द्वेषता के फूल
जिनसे आती हैं
कटुता की गंध
हे बसंत !
तुझे जाना होगा
इस धरा से
अपमानित होकर
क्यूंकि अब यहाँ के लोग
सौदाई हो गये हैं
किसी ओर बसंत के...
*व्यग्र पाण्डे
गंगापुर सिटी (राज.)
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