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प्रकृति के श्रृंगार का विशेष पर्व बसन्तोत्सव


*राज शर्मा

बसन्तोत्सव देश भर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । बसन्त ऋतु को षड ऋतुओं में श्रेष्ठ ऋतुराज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । माघ मास शुक्ल पक्ष पञ्चमी तिथि को बसन्त पंचमी मनाई जाती है । वाणी की देवी सरस्वती को समर्पित बसन्तोत्सव देशभर में भगवती के जन्मोत्सव के उपलक्ष पर मनाया जाता है । खेतों खलियानों में सरसों बहुत ही सुंदर रंगों में अवलोकित होती है । कोयल का मधुर स्वर इस ऋतु की नवीनता को प्रदर्शित करता है । भारतीय शास्त्रीय संगीत कला में बसन्त ऋतु का विशिष्ट स्थान माना जाता है । शायद संगीत की दुनिया में एक राग का नाम बसन्त ऋतु के नामकरण के उपलक्ष पर रखा गया हो । जिसे राग बसन्त कहा जाता है ।

 

● कवि , लेखकों, रसिकों , गायकों, वादक, नृत्यकारों, का बसन्तोत्सव सबसे विशेष रहता है इस दिन माता सरस्वती की पूजा अर्चना व आराधना करते हैं । 

 

● प्रकृति स्वयं अपने रुप का मनभावन श्रृंगार करती है जिससे वातावरण अलौकिक हो जाता है ।

 

बसन्त पञ्चमी के आगमन से सृष्टि का तापमान सामान्य हो जाता है । पेड़ पौधों में नवीन फूल पत्ते आ जाते हैं । चहुं ओर अनेक रंगों से लदी हुई धरती स्वर्ग का नज़ारा स्वर्ग से हो जाता है । बसन्त पञ्चमी को पहाड़ों व उद्यानों का दृश्य देखते ही बनता है । 

 

● बसन्तोत्सव पर माता सरस्वती का प्रादुर्भाव एवं जीवों को वाक शक्ति की प्राप्ति  

 

सृष्टि के सृजनकर्ता विधाता ने जब सृष्टि रचना का कार्य को किया तो स्वयं विधाता ही अपने सृष्टि सृजन से अभाव युक्त और निराश थे मन:स्थिति आधिमय हो गई । क्योंकि प्राणियों की रचना तो हो गयी परन्तु बोलने की शक्ति का कैसे सृजन करें । क्योंकि समस्त सृष्टि तो मूक बनी हुई है । विधाता ने श्री नारायण की आज्ञानुसार निज कमंडल से पवित्र जल का आक्षेपण किया । त्रिभुवन में कम्पन हुआ । जिससे माता वाग्देवी सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ। विधाता की आज्ञा से भगवती ने वीणा वादन किया दिव्य वीणा की तार से समस्त चराचर जगत में वाक शक्ति ( बोलने की शक्ति) का प्रादुर्भाव हुआ ।

 

● परमार वंश के राजा भोज का जन्म भी बसन्त पञ्चमी के दिन हुआ था ।

 

● बसन्त पञ्चमी के दिन देवी रति और प्रेम व स्नेह के अधिपति देवता कामदेव की पूजा की परम्परा रही है । कहते हैं इसी दिन देवी रति और कामदेव ने प्रथम बार अपनी शक्ति से पृथ्वी पर बसे प्राणियों के हृदय में आकर्षण व स्नेह का भाव जगाया था । बसन्तोत्सव को मदनोत्सव कहकर भी सम्बोधित किया जाता है ।

 

वर्ष 2020 में दो दिन बसन्त पञ्चमी का पर्व मनाया जाएगा । क्योंकि पञ्चमी तिथि का आरम्भ बुधबार 29 जनवरी सुबह 10 बजकर 45 मिनट से हो जाएगा । जो बृहस्पतिवार 30 जनवरी 2020 को 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगी । इस वर्ष तीन ग्रहों का संयोग ( मंगल ग्रह वृश्चिक राशि में गुरु धनु राशि में शनि मकर राशि में ) अपने घर पर होने से बसन्तोत्सव काफी श्रेष्ठ व शुभ रहेगा । 

सनातन धर्म में सूर्योदय कालीन तिथि का विशेष महत्व होता है अर्थात सूर्योदय जिस तिथि के अंतर्गत होता है उस दिन उसी तिथि का मान पूरे  दिवस रहता है । शास्त्रानुसार देवी-देवताओं की पूजा का विधान भोर की प्रथम बेला में करने का विधान है । इसके तहत सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त बसन्तोत्सव पूजा का 30 जनवरी को रहेगा ।

 


 

*राज शर्मा, आनी कुल्लू हिमाचल प्रदेश

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