*सुनीता शानू
उसे कहा गया था
दुख हमेशा निभाते हैं
साथ चलते हैं उम्रभर
उसे कहा गया था
खुशियां होती हैं मेहमान
उड़ जाती हैं छूकर
और फिर उसे लगा भी
खुशियों को
नज़र लग जाती होगी
शायद
वही दुखों को लाती होंगी
उसने हँसी का बड़ा सा तावीज़ बनाया
दुखों को गले में लटकाया
अब दुख गले तक लटके रहते हैं
चेहरे पर नहीं आ पाते
खुशी भी होंठों पर खेलती है
छोड़ कर नहीं जाती...
*सुनीता शानू,दिल्ली
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