ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर की परंपराएं जितनी पुरातन हैं, इनके निर्वहन का इतिहास भी उतना ही पुराना है। करीब आधी शताब्दी पहले महाशिवरात्रि पर भगवान महाकाल के चार प्रहर की पूजा का समय जल घड़ी के अनुसार तय होता था। मंदिर के सभा मंडप में जल घड़ी के समय की गणना करने वाले जानकार को बैठाया जाता था, जो घटी, पल के अनुसार समय निर्धारित कर पुजारियों को जानकारी देते थे।
परम्परानुसार महाशिवरात्रि पर भगवान महाकाल की चार प्रहर की पूजा होती है। दोपहर 12 बजे स्टेट की ओर से (वर्तमान में तहसील की ओर से होने वाली पूजा) पूजा की जाती है। शाम 4 बजे सिंधिया व होलकर राजवंश की ओर से पूजन होता है। रात्रि 11 बजे महानिशाकाल के पूजन की शुरुआत होती है। अगले दिन तड़के 4 बजे भगवान को सप्तधान अर्पित कर सवामन फूल व फलों का सेहरा सजाया जाता है।
वर्तमान समय में मंदिर में विभिन्न स्थानों पर घडी लगी हुई है। लेकिन करीब 50 साल पहले मंदिर में घड़ी नहीं होती थी। उस समय महाशिवरात्रि की पूजन के लिए स्टेट की ओर से जल घड़ी का इंतजाम किया जाता था। विशेषज्ञ जल घड़ी से घटी अनुसार समय की गणना करते थे।
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ढाई घटी का एक घंटा के अनुसार 24 मिनट की एक घटी होती है। ढाई घटी का एक घंटा तथा साठ घटी का दिन रात होता है। इसी गणना के आधार पर एक घंटा पूरा होने पर घंटा बजाया जाता था। पुजारी इसके अनुसार महाअभिषेक पूजन का क्रम निर्धारित करते थे। जल घड़ी निर्माण की अपनी विशिष्ट कला होती थी। इसके लिए एक बड़े तपेले में पानी भरा जाता था। उसमें एक कटोरा डाला जाता था, जिसके नीचे छिद्र होता था। इस छिद्र के माध्यम से पानी जब कटोरे में भरने लगता था। उसी के अनुसार समय की गणना होती थी।
ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में महाशिवरात्रि के लिए गुरुवार रात 2.30 बजे मंदिर के पट खुलेंगे और भस्मारती होगी। आरती के उपरांत सुबह 5 बजे से आम दर्शन का सिलसिला शुरू होगा, जो 22 फरवरी को रात 10.30 बजे शयन आरती तक चलेगा। भक्तों को लगातार 43 घंटे भगवान महाकाल के दर्शन होंगे। शिवरात्रि पर पहली बार सिंहस्थ महापर्व की तर्ज पर दर्शन व्यवस्था लागू की गई है।
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