डॉ. संध्या शुक्ल ‘‘मृदुल’’
अमुआ की डाल तले
मेरा एक मकान है।
कुहू कुहू गूंजे जहां
कोयल की तान है।
चंपा औ चमेली जूही
बगिया की षान है।
बहुरंगी फुलवारी से
प्रमुदित मन प्राण हैं।
साग सब्जी से लदी
प्यारी एक क्यारी है।
माता पिता हैं करते
जिसकी रखवारी हैं।
दादा और दादी का
वट वृक्ष सम मान है।
ममता की छांव जहां
मिले एक समान है।
ईंट गारे का न घर
ममता का संसार है।
नेह प्रेम और सौहार्द
जहां मिले अपार है।
*डॉ. संध्या शुक्ल ‘‘मृदुल’’
श्रीराम वार्ड, नावघाट, मण्डला
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