*अनामिका सोनी
सूनी सड़कें, सूनी गलियां
चारों और पसरा सन्नाटा
सन्नाटे को चीर के देखो
कैसे फिर भी निकल पड़े हैं
उफ़ ये लोग नादान बड़े हैं!
अपनों के संग घर में बिताना,
अस्पताल में ही रह जाना,
या भारत में रहकर
चीनी मौत को अपने गले लगाना
विकल्प सामने चुनों,खड़े हैं
उफ़ ये लोग नादान बड़े हैं!
घर में देखो कितनी खुशियां
छिपी हुई पहचानो इनको
खो जाओ कुछ दिन इनमें तुम
ढूंढ रही थी कब से तुमको
जी लो इन लम्हों को ,जिनसे
अर्से बाद फिर नयन लड़े हैं
उफ़ ये लोग नादान बड़े हैं
अब भी समय है जाग जाए
हम प्रकृति से खिलवाड़ करें बंद
दिन प्रतिदिन विकराल हो रहा
नियति का ये चक्र जाए थम
चक्रव्यूह में फंसों न, देखो
मौत के बंदोबस्त कड़े हैं
उफ़ ये लोग नादान बड़े हैं!
उफ़ ये लोग नादान बड़े हैं।।
*अनामिका सोनी, उज्जैन
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