Technology

3/Technology/post-list

न देखो ताज़ को तुम दिल्लगी से


* बलजीत सिंह बेनाम


न देखो ताज़ को तुम दिल्लगी से
मोहब्बत की है तुमने गर किसी से


हुआ अनजाने में इक क़त्ल जिससे
छुपाए फिर रहा था मुँह सभी से


जो इसमें अक़्स देखेंगे ख़ुदा का
ख़ुदा उनको मिलेगा शायरी से


कहीं टिकने नहीं देता मुझे ये
बहुत उकता गया हूँ अपने जी से


लड़ा के मज़हबों को क्या मिलेगा
कहाँ बुझती बताओ आग घी से


 *बलजीत सिंह बेनाम, हासी


Share on Google Plus

About शाश्वत सृजन

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 Comments:

एक टिप्पणी भेजें