*डॉ नलिन
साँसों में है नाम उसी का
अपना इक इक काम उसी का
.
जैसा भी हो घर रहने को
लगता अब तो धाम उसी का
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जिस पर रीझा जाता है मन
क्षणभंगुर यह चाम उसी का
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भीतर सद्गुण , दुर्गुण का जो
देवासुर संग्राम उसी का
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करता आना-जाना जग में
चक्र घूम अविराम उसी का
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भोला भाला ही निश्छल है
होता आया राम उसी का
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चाहे हस्त नलिन करुणा का
सिर पर आठों याम उसी का
*डॉ नलिन, कोटा
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