*संजय वर्मा "दॄष्टि "
नीर भरे नयन
पलकों पर टिके
रिश्तों का सच
बिन बोले कहते
यादों की बातें
ठहर जाते है पग
सुकून पाने को
थके उम्र के पड़ाव
निढाल हुए मन
पूछ परख रास्ता
भूलने अब लगी
राहें इंतजार की
रौशनी चकाचोंध
धुंधलाए से नयन
कहाँ खोजे आकृति
जो हो गई अब
दूरियों के बादलों में
तारों के आँचल में
निगाह से बहुत दूर
जिसे लोग देखकर
कहते- वो रहा चाँद
*संजय वर्मा "दॄष्टि "मनावर (धार )
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